हुनर तो झुकने का मुझमें भी है बहुत, मगर हर चौखट पर सज़दा करूँ ये गवारां नहीं
दर्द दिया है किसी अपने ने उसी का कर्ज चुकाना है कुछ हसीं बची है जिंदगी में उसी का सौदा करना है
दूसरी मोहब्बत अक्सर उसी से होती है जिसे आप पहली मोहब्बत का रोना सुना रहे होते हैं
समझाया, बहलाया, बहकाया, धमकाया, दिल ही तो है, कम्बख़त बाज़ कहां आया !!
मेरे साथ कोई हो ना हो फर्क नहीं पड़ता, बस मेरे सिर पर मेरी मां का हाथ होना चाहिए।
“होने वाले खुद ही अपने हो जाते हैं, किसी को कहकर अपना बनाया नहीं जाता
अपनी सांसों में आबाद रखना मुझे". मैं रहूं या ना रहूँ हर घड़ी याद रखना मुझे.
हालात सीखा देते है जीने का हुनर, फिर क्या लकीरें और क्या मुकद्दर .
उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था वरना हमनें क्या-क्या नहीं खोया उसे पाने के लिए
बड़ी अजीब शय है ये इश्क़ भी, उसीसे से होता है, जिसको कद्र नहीं होती...